विश्वकर्मा पूजा - श्री विश्वकर्मा वंश सुथार दर्पण



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Tuesday, 1 August 2017

विश्वकर्मा पूजा




सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ और कलयुग के ‘हस्तिनापुर’ आदि के रचयिता विश्वकर्मा जी की पूजा अत्यन्त शुभकारी है। कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण किया था. पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं भी भगवान विश्रकर्मा द्वारा ही बनाई गई हैं.

कन्दपुराण के नागर खण्ड में भगवान विश्वकर्मा के वशंजों की चर्चा की गई है । ब्रम्ह स्वरुप विराट श्री.विश्वकर्मा पंचमुख है । उनके पाँच मुख है जो पुर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऋषियों को मत्रों व्दारा उत्पन्न किये है । उनके नाम है – मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ ।

ऋषि मनु विष्वकर्मा – ये “सानग गोत्र” के कहे जाते है । ये लोहे के कर्म के उध्दगाता है । इनके वशंज लोहकार के रुप मे जानें जाते है ।

सनातन ऋषि मय – ये सनातन गोत्र कें कहें जाते है । ये बढई के कर्म के उद्धगाता है। इनके वंशंज काष्टकार के रुप में जाने जाते है।

अहभून ऋषि त्वष्ठा – इनका दूसरा नाम त्वष्ठा है जिनका गोत्र अहंभन है । इनके वंशज ताम्रक के रूप में जाने जाते है ।

प्रयत्न ऋषि शिल्पी – इनका दूसरा नाम शिल्पी है जिनका गोत्र प्रयत्न है । इनके वशंज शिल्पकला के अधिष्ठाता है और इनके वंशज संगतराश भी कहलाते है इन्हें मुर्तिकार भी कहते हैं ।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा  निम्नलिखित विधि विधान से करनी चाहिए.

इस दिन प्रातः स्नान आदि करने के बाद पत्नी के साथ पूजा स्थान पर बैठे।

इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करनें के बाद हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर- ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, ॐ पृथिव्यै नम: कहकर चारों ओर अक्षत छिड़के और पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांधे ।

अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे तथा पत्नी को भी बांधे।

पुष्प जल पात्र में छोड़े।

इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें।

रक्षा दीप जलाये, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें।

शुद्ध भूमि पर अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल बनाए।

उस स्थान पर सात अनाज रखे।

उस पर मिट्टी और तांबे का जल डाले।

इसके बाद पंचपल्लव (पाँच पेड़ो के पत्ते), सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का ढ़क दें।

चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें।

पुष्प चढ़ाकर कहें – हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।
पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें  और भगवान विश्वकर्मा जी की आरती करे.



आरती श्री विश्वकर्मा जी की Vishwakarma Ji Ki Aarti


जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||

आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||

ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
जय श्री विश्वकर्मा.

जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||

ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||

श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
जय श्री विश्वकर्मा.

धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।







विश्वकर्मा पूजा फल (Benefits of Vishwakarma Puja)


मान्यता है कि विश्वकर्मा पूजा करने वाले व्यक्ति के घर धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि की कभी कोई कमी नही रहती है। इस पूजा की महिमा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि होती है तथा सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।


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